ब्रह्मलीन श्री महंत नरेंद्र गिरि आत्महत्या का मामला कथित पत्र को लेकर उठे सवाल

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*पुलिस भले ही आत्महत्या मानकर जांच को बढ़ाएं, कई संतों की मांग, उच्चस्तरीय हो जांच*


हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी द्वारा कथित तौर आत्महत्या करने के मामले की गुत्थी उलझती जा रही है। कई संतो का मानना है कि उनके द्वारा आत्महत्या करने से पहले लिखी गई चिटढी संदेह के घेरे में है। कई संतो का कहना है कि वे इतनी लम्बी चिटठी नही लिख सकते । इस सम्बन्घ में अखिल भारतीय संत समिति के स्वामी जितेन्द्रानंद ने दावा किया कि उन्होने कई मौके पर देखा है कि श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी लिखने के मामले में काफी बचते थे। दावा किया कि मामला आत्महत्या का नही,बल्कि हत्या का है और इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। वही श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी कैलाशानंद महाराज का भी कहना है कि श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी इतना लम्बा पत्र नही लिख सकते। उन्होने कहा कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के ब्रह्मलीन अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की मौत के मामले में निरंजनी अखाड़ा ने पुलिस जांच हाई कोर्ट जज के पैनल की निगरानी में किए जाने की मांग की है। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने कहा श्रीमहंत नरेंद्र गिरि को दो-चार शब्द छोड़कर लिखना नहीं आता था। ऐसे में साफ है कि उनके नाम पर किसी और ने सुसाइड नोट लिखा है। आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने कहा कि श्रीमहंत नरेंद्र गिरि उनके बेहद नजदीकी थे और एक-दूसरे को पिछले करीब 25 से 30 सालों से जानते हैं। उनका कहना है कि नरेंद्र गिरि दो-चार शब्दों को छोड़कर उन्हें बिल्कुल भी लिखना नहीं आता था। वह केवल अपना हस्ताक्षर कर पाते थे और जो दो-चार शब्द वह लिख सकते थे, उसमें भी एस लिखना उनको नहीं आता था। ऐसे में साफ है कि उनके नाम पर किसी और ने आठ पेज का यह सुसाइड नोट लिखा है। पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने भी कहा है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के बारे में धर्मनगरी हरिद्वार के वरिष्ठ संतों की धारणा है कि वह शांत चित्त, धीर-गंभीर, दृढ़ निश्चयी और मजबूत दिल वाले उच्च कोटि के सरल हृदय संत थे। वह सहज ही किसी पर भी विश्वास कर लेते थे। इसका तमाम लोगों ने फायदा उठाया और उन्हें कई तरह की मुसीबत में भी फंसाया। हालांकि, अपने सच्चे व्यक्तित्व के कारण वह हर समस्या से पार पा लेते थे। हालांकि, यही खूबी उनकी जान की दुश्मन भी बन गई। कहा कि श्रीमहंत नरेंद्र गिरि आमतौर पर शांत चित्त के स्वामी थे, लेकिन उन्हें किसी भी स्तर पर गलती या गंदगी बर्दाश्त नहीं थी। धर्म और स्वाभिमान की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी थी। कई अन्य संतो ने भी मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।