मीडिया जगत की चुनौतियां और संभावित संकट का एक सिंहावलोकन और समाधान पर चर्चा

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नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया)

*राष्ट्रीय कार्यसमिति चंडीगढ़ 13 एवं 14 नवंबर 2021

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की यह कार्य समिति बैठक वर्तमान संदर्भ में भारतीय मीडिया एवं पत्रकारों की बिगड़ती स्थिति पर गहन चिंता प्रकट करती है। आजादी के बाद की पत्रकारिता और आज के पत्रकार संदर्भ को एक साथ रखकर देखते हैं तो स्थिति न केवल भयावह लगती है बल्कि आसन्न संकट तथा समय के लिए आज से ही चिंतन और बचाव के लिए प्रेरित करती है। इसलिए नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) चंडीगढ़ कार्यसमिति में समवेत समस्त सदस्यगण संगठन की विरासत के अनुरूप भारत के मीडिया जगत और पत्रकारिता तथा पत्रकार मित्रों के उन्नयन और संरक्षण के लिए प्रयास के साथ-साथ उन्हें दायित्वों और अनुशासन के प्रति जागरूक बनाने का कार्य करेंगे।

सबसे पहले मीडिया और पत्रकारिता क्षेत्र में आसन्न संकट पर हम चर्चा करते हैं।
 •  पत्रकारिता के प्रिंट मीडिया स्वरूप के समय गरिमा, प्रतिष्ठा और मिशन का सम्मिश्रण हमें गर्व की अनुभूति कराता था, सभी क्षेत्रों में इस पेशे का सम्मान था।
•  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन से पत्रकारिता बहु आयामी हुई जिससे हमें प्रशासनिक राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों में अधिक पारदर्शिता के साथ खबरें प्रस्तुत करने का अवसर मिला। खबरों का चित्रण उस वास्तविक स्थिति को देश-दुनिया के सामने रख देता था जो प्रिंट मीडिया में वस्तुस्थिति के चित्रण के बावजूद प्रत्यक्षदर्शी स्थिति में नहीं आ पाती थी।
 •  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते प्रभाव से प्रिंट मीडिया का पराभव निकट लगने लगा लेकिन यह प्रिंट मीडिया के पुरातन स्वरूप को अधिक दिन तक प्रभावित करने जैसी स्थिति में नहीं आ सका और प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और महत्व पर उसका ज्यादा असर नहीं हुआ।
 • कुछ वर्ष बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के स्वरूप में आए बदलाव के चलते मीडिया जगत की विश्वसनीयता पर गंभीर संकट के बादल छा गए। जिससे समूचे मीडिया पर सवाल उठे और परिणामस्वरूप लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका कमजोर होने से उसके अन्य स्तम्भों में बैठे निहित स्वार्थी तत्वों ने इसका लाभ उठाया ।
 •  वर्तमान में मीडिया जगत को सबसे बड़ी चुनौती सोशल मीडिया से मिल रही है। जिसमें वैचारिक प्रतिबद्धता और घटनाओं का विश्लेषण षडयंत्रपूर्वक किया जाता है। इससे मीडिया में प्रकाशित या प्रसारित हो रहे समाचारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। सोशल मीडिया सबसे पहले तो सूचनाओं के त्वरित प्रसार का आधार बना।किन्तु शीघ्र ही वह षडयंत्रों और प्रतिबद्धताओं के वाहक के रूप में कुख्यात होता चला गया। जिसका खामियाजा पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को उठाना पड़ रहा है।
 •  वेब मीडिया से प्रारंभिक दिनों में विश्वसनीयता वापस हासिल करने का अवसर प्राप्त हुआ था लेकिन कुकुरमुत्तों की तरह दिन – प्रतिदिन विस्तारित हो रहा वेब मीडिया भी विश्वसनीयता का संकट में घिरता जा रहा है। इससे मीडिया जगत में विभिन्न प्रकार की समस्याएं और संकट पैदा हो रहे हैं।
 •  मीडिया घराने और पत्रकारिता की इस स्थिति के लिए नामचीन और स्थापित पत्रकारों की भूमिका भी कम जिम्मेदार नहीं है। ये कहना गलत न होगा कि मीडिया के कारोबारी पक्ष के दबाव से पत्रकारिता कमज़ोर हुई है। समाचारों पर विज्ञापन प्रबंधन के प्रभाव से संस्थानों ने जरूर धन कमाया लेकिन इसके चलते पत्रकारिता का कमजोर होना इस पवित्र पेशे के साथ ही लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में विश्वसनीयता के निरन्तर गंभीर होते संकट से निपटने के लिए पत्रकार संगठनों, मीडिया घरानों और केंद्र-राज्य की सरकारों से सुधारात्मक उपायों की जरूरत है।

•  नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) पिछले कई वर्षों से केंद्र सरकार से यह मांग करती आ रही है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक सीमित मीडिया क्षेत्र (प्रिंट) की निगरानी करती है। विस्तारित मीडिया के परिप्रेक्ष्य में मीडिया काउंसिल का गठन किया जाना चाहिए। जिसमें प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब और सोशल मीडिया को भी शामिल किया जावे।
•  हम समय-समय पर यह कहते रहे हैं कि मीडिया क्षेत्र को नियमन की परिधि में लाया जाए। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) का सुझाव है कि मीडिया में समाचारों, सामग्री के तथ्यात्मक होने, प्रकाशन का सामाजिक सरोकार, पेड न्यूज़, फेक न्यूज़, हेक न्यूज़ जैसे विषयों में आत्म नियमन के दृष्टिकोण से पत्रकार संगठनों और पत्रकारों का एक नियामक आयोग गठित किया जाना चाहिए। ताकि मीडिया में स्व -नियमन का चलन प्रारंभ हो सके।
 •  देश के समाचार पत्रों और मीडिया घरानों को विदेशी निवेश से बचाने के लिए मीडिया के लिए एफडीआई पॉलिसी पर पुनर्विचार करते हुए उसे राष्ट्र हितैषी बनाने की जरूरत है। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) इस पर अपनी चिंता व्यक्त करता है कि कतिपय व्यवसायिक घरानों ने मीडिया संस्थानों का ठीक उसी प्रकार अधिग्रहण करना प्रारंभ कर दिया है जिस प्रकार वे औद्योगिक इकाइयों का अधिग्रहण करते हैं। इससे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया व्यवसायिक घरानों का पालतू बन जाएगा और इसका व्यवसायिक हित के लिए दुरुपयोग शुरू हो जाएगा। अभी भी इसके खतरे अनेक प्रकार से दिखाई दे रहे हैं।
 •  समाचारों की निष्पक्षता, गुणवत्ता और सामग्री को परख कर अधिकाधिक समाचार पत्रों के माध्यम से आम नागरिक तक पहुंचाने में समाचार एजेंसियां बड़ी भूमिका निभाती रही हैं परन्तु वे आर्थिक रूप से कमजोर होने से अपने कर्तव्य को पूरा नहीं कर सकतीं। चूंकि इनकी आर्थिक सुदृढ़ता निष्पक्षता के लिए जरूरी है, इसके लिए समुचित व्यवस्था और विनियमन की तरफ पूरा ध्यान देना होगा।
 •  पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले सुप्रसिद्ध और लेखनी के धनी पत्रकारों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद विभिन्न प्रकार से अपनी पत्रकारीय गतिविधियां जारी रखी जा रही है। इनमें पत्रिकाएं , वेब मीडिया और स्तंभ लेखन शामिल हैं। इनकी आर्थिक समस्याओं की वर्तमान ढांचे में पूरी तरह अनदेखी हो रही है, पत्रकार जगत और लोकतंत्र को उनके सुदीर्घ अनुभव का लाभ प्राप्त हो तो वे पत्रकारिता को विश्वसनीय, समृद्ध और जन उपयोगी बनाने में भूमिका निभा सकते हैं।
 •  पत्रकारिता की विश्वसनीयता और जनहित को समर्पित पत्रकारिता का पराभव तभी रुक सकता है जब छोटे और नियतकालिक समाचार पत्रों की सक्रियता बरकरार रहे। छोटे और नियतकालिक समाचार पत्रों से तथाकथित बड़े और भारी भरकम समाचार पत्रों की नीतिगत पत्रकारिता से जन कल्याणकारी पत्रकारिता की ओर मोड़ने में सहायता मिलती है। इनकी स्वतंत्र और निष्पक्ष भूमिका के निर्वहन में सहयोगी नीतियां बनाए जाने की जरूरत है। इस प्रकार की कुछ व्यवस्था पहले चलन में थी, उसे बहाल करने और मजबूत बनाने की जरूरत है।