- संघ प्रमुख ने प्रकृति प्रेम को भारतीय परंपरा और जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा बताया…
- पर्यावरण समिति महाकुंभ 2021 ने हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र को स्वच्छ रखने और पॉलीथीन मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा…
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पर्यावरण संरक्षण को भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताते हुए समाज के प्रबुद्ध और जागरूक लोगों से इस दिशा में अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सार्थक योगदान करने का आह्वान किया।
पर्यावरण समिति के तत्वावधान में आयोजित इस गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए भागवत ने कहा – ‘पर्यावरण संरक्षण के कामों में तेजी लानी होगी। यह हमारा सामाजिक दायित्व है कि हमने कितने तालाब खुदवाये और पौधे लगाए! इसलिए अपने काम और काम के परिणाम समाज को दिखाने-बताने होंगे। गतिविधि प्रमुखों को कार्य करने के दौरान स्वयं के प्रचार से बचना चाहिए। हमेशा इस बात पर गौरव और संतोष करें कि हम राष्ट्र निर्माण और मानवता की सेवा में लगे हैं।
पर्यावरण गतिविधि में 1 अप्रैल से हरिद्वार में शुरू हुए कुंभ मेले को पॉलिथीन मुक्त बनाने का आह्वान किया है और इसके लिए पर्यावरण समिति महाकुंभ हरिद्वार 2021 का गठन किया है। इस समिति के तहत व्यापारियों, संतो, महिलाओं,शैक्षणिक संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों इत्यादि अलग-अलग समूहों की 16 उप समितियां बनाई गई है, जो अपने-अपने सामाजिक वर्गों के बीच कुंभ को स्वच्छ बनाए रखने और पॉलिथीन मुक्त बनाने के प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। इस सेमिनार में देश के अलग-अलग हिस्सों के 40 विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों ने भी हिस्सा लिया। पर्यावरण गतिविधि देश भर के शिक्षण संस्थानों को भी पर्यावरण संरक्षण के वृहत अभियान से जोड़ना चाहता है।
भागवत ने कहा, ‘ हिंदू परंपरा में प्रकृति संरक्षण अलग से किया जाने वाला कोई काम नहीं है। हमारे लिए यह जीवन का एक हिस्सा है। जो हमारे व्यक्तिगत और समाज जीवन के हर पहलू में शामिल है। पर्यावरण संरक्षण हमारे लिए किताबी ज्ञान या बौद्धिक विमर्श का परिमाण नहीं है, बल्कि प्रकृति से हमारे स्वभाविक प्रेम में यह सर्वदा सम्मिलित है।’
संघ प्रमुख ने कहा, ‘लोभ को पूरा करना प्रकृति के वश में भी नहीं है। हर बात की उपयुक्तता और योग्यता जानने के बाद भी मन का भाव बदलना नहीं चाहिए, परन्तु सामान्य आचरण में नहीं होता है।
यहीं मानवीय की प्रकृति है।
प्रकृति संस्कृति और समाज में कुछ कमियां आज आयी है, लेकिन उन्हें निकालेंगे।
भारत विविधता में एकता की शक्ति के साथ विश्व में सभी विपदाओं को वर्षों से झेलते हुए आज भी अडिग खड़ा है और आगे भी हमेशा रहेंगा।
विकास और पर्यावरण एक दूसरे के विरोधी नहीं है ऐसा सोचकर विकास का नया इतिहास लिखेंगे।
इतिहास में भी हम विश्व में नम्बर वन थे, बावजूद उसके हमारे यहाँ पर्यावरण से जुड़ी कोई समस्या नहीं थीं।
इतिहास में हम पिछले 6 हजार साल से खेती करके दुनिया को अन्न उपलब्ध कराते आए है। बावजूद आज भी हमारे यहाँ की भूमि उपजाऊ है। ये इस बात का प्रमाण है कि हम पर्यावरण के अभिन्न अंग है और पर्यावरण के विकास से ही सृष्टि का विकास है।
मनुष्य के रूप में हम ही सबसे महान हैं, इस अहंकार को त्याग कर हमें पर्यावरण पर विचार करना होगा। हम अपने आचरण को बदल दें, तो निश्चित ही पर्यावरण में भी स्थितियां बदलेंगी।
पर्यावरण गतिविधि का काम पर्यावरण को दूषित कर रहे आचरण को बदलना है।
देव संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. वाइस चांसलर डॉ. चिन्मय पांडेय ने अपने सम्बोधन में भारतीय सनातन परंपरा में कुंभ के महत्व को अमृत मंथन की कहानी से जोड़ा। आपने कहा कि संघर्ष की गाथा से ही सौभाग्य की गंगा निकल सकती है। समुद्र मंथन में भी अमृत से पहले विष निकला था वहीँ स्थिति आज पर्यावरण संरक्षण को लेकर बनी हुई है।
आज पर्यावरण की स्थितियों पर विचार इसलिए जरूरी है क्योंकि दुनिया में हो रही हर 8वीं मौत वायु प्रदूषण से हो रही है।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे हमारे प्रयास केवल कुम्भ तक सिमट कर नहीं रहने वाला है। भारत भर के शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर हम वातावरण में फैले इस विष को अमृत में बदलने के लिए निरंतर इसी प्रकार कार्यरत रहेंगे।
‘ पर्यावरण की बात करते हुए हर किसी के लिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि यह सब एक – दूसरे से सम्बद्ध है। आप जल की बात करते हुए जंगल को नहीं छोड़ सकते, या मिट्टी की समस्या पर काम करते हुए जल को नहीं छोड़ सकते। यह तो समाधान का एक पहलू है। दूसरा पहलू समाज की सम्मिलित शक्ति का उपयोग है। व्यक्तिगत प्रयास तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन उसे सामाजिक प्रयास का एक हिस्सा नहीं बनाया जाता, तो हम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते।