करवा चौथ का पर्व आज (24अक्टूबर) को पूर्ण विधि-विधान के अनुसार मनाया जा रहा है। यह पर्व सनातन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। इस व्रत में सास अपनी बहू को सरगी देती है। इस सरगी को लेकर बहुएं अपने व्रत की शुरुआत करती हैं। सूर्योदय से पूर्व सुहागन सरगी का सेवन करती है इसके बाद रात में चंद्र दिखने के बाद जल चढ़ा कर व्रत खोलती हैं।
*कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आरंभ-24 अक्तूबर प्रातः 3:01 मिनट से
*कृष्ण पक्ष की चतुर्थी समाप्त- 25 अक्तूबर प्रातः 5:43 मिनट तक
*24 अक्तूबर को रात्रि 8:12 मिनट पर चंद्रोदय होगा। (अलग-अलग जगहों पर चांद के निकलने का समय थोड़ा आगे पीछे रहेगा)
करवा चौथ व्रत की उत्तम विधि
सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत रखने का संकल्प लें। शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें। गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएंतथा भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की चीजें अर्पित करें,साथ ही श्री कृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं, अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं, और मिट्टी के करवे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं, फिर करवे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी से चांद के दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें, करवा चौथ के दिन महिलाओं को करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए और कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों के पैर जरूर छुएं। इस दिन पति को प्रसाद देकर भोजन कराएं और बाद में खुद भी भोजन करें।
विभिन्न शहरों में चंद्रोदय का समय
वैसे तो करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय रात 08:11 बजे है, लेकिन अलग-अलग शहरों में यह समय अलग-अलग हो सकता है।
- दिल्ली: 08 बजकर 08 मिनट
- नोएडा 08 बजकर 07 मिनट
- मुंबई 08 बजकर 47 मिनट
- लखनऊ: 07 बजकर 56 मिनट
- देहरादून: 8 बजे
- कानपुर- 08 बजकर 00 मिनट पर
- मेरठ: 08 बजकर 05 मिनट
- प्रयागराज- 07 बजकर 56 मिनट पर
- आगरा : 08 बजकर 07 मिनट
- अलीगढ़: 08 बजकर 06 मिनट
करवा चौथ का इतिहास
मान्यताओं के मुताबिक करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है. म
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी तब भयभीत होकर देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मा ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।
ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत निश्चित हो जाएगी. ब्रह्मा जी के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया.उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई(ZN)