ताजा खबर: जो संत स्वयं संगठित नहीं रह सकते वह समाज को क्या संदेश दे सकते

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भूमानंद तीर्थ न्यास संस्थान के प्रबंधक राजेंद्र शर्मा का कहना है कि अखाड़ा परिषद संस्था की वित्तीय रिपोर्ट, बैलेंस सीट और ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक करे। साथ ही संस्था का खाता नंबर सहित सभी जानकारियां सार्वजनिक की जाए, जिससे पारदर्शिता बनी रहे। राजेंद्र शर्मा का आरोप है कि अखाड़ा परिषद अब स्वयं भू अखाड़ा परिषद बन गया है। अब अखाड़ों के पदाधिकारी किसी दल विशेष को सत्ता में लाने का दावा कर रहे हैं। जो कि अनुचित है। सन्यास परंपरा में रहते हुए अखाड़ा परिषद का राजनीति करना गलत है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि कुंभ के दौरान जिन अखाड़ों को एक-एक करोड़ रूपए की धनराशि दी गई थी, उनके कार्यों का ऑडिट कराया जाना चाहिए। अखाड़ों ने अपनी मनमानी शुरू कर दी है। जिससे व्यवस्था गड़बड़ा रही है। अब अखाड़े न तो शंकराचार्य को ही मानते हैं और न ही उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। धर्म, धर्म स्थल, धर्म ग्रन्थ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परम्पराओं की रक्षा के लिए आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने विधर्मियों को शास्त्र से हराकर सनातन धर्म की रक्षा की थी। जो विधर्मी शास्त्र से नही माने, उन्हें मनाने और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाडों का गठन कर शस्त्र चलाने का कार्य अखाड़ो को सौंपा गया। विभिन्न धार्मिक संगठनों ने, खासकर कुम्भ व अर्द्धकुम्भ मेलां में साधु-सन्तों के झगडों एवं खुनी टकराव से बचने के लिए सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद् की स्थापना की। परन्तु अब यह अखाड़ा परिषद न होकर, यह एक झगड़ा परिषद् बन गया है। जब तक यें अखाड़े, जगद्गुरु शंकराचार्य जी के बनाये अनुशासन में चलते रहे तब तक सब ठीक चलता रहा, परन्तु अब इन्होंने अपनी मनमानी प्रारम्भ कर दी तो यह व्यवस्था गड़बड़ा गई क्योंकि अब यें, न तो शंकराचार्य जी को ही मानते है और न ही उनकी परम्परा को। यें, स्वयं भू-अखाड़ा परिषद है, अब तो इसका नाम झगड़ा परिषद् कर देना भी अनुचित लग रहा है। जो स्वयं ही संगठित नही रह सकते, वें समाज को संगठित रहने का उपदेश कैसे दे सकते है ?सैद्धान्तिक रुप में सन्तों का राजनीतिक दलों से कोई सम्बन्ध नही होता, यह धार्मिक परम्परा भी नही है। सन्यासियों की ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ की इस परमपरा को खण्डित न करें। कुम्भ मेले के दौरान दी गई एक-एक करोड़ की जो धनराशि अखाडो को दी गई है उसके खर्चे के पाई-पाई का हिसाब जनता के समक्ष रखना चाहिए क्योंकि वह पैसा जनता की खून-पसीने की कमाई का है और आज की तारीख में कोई भी अखाड़ा गरीब नही है। सरकार का काम है समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति की सुरक्षा करना परन्तु इस कुम्भ मेले में राज्य सरकार द्वारा धनाड्य लोगों को एक-एक करोड़ की धनराशि देकर वित्तीय अनियमित्ता की गई है, इस वित्तिय अनियमित्ता की सी0बी0आई0 से जाँच करायी जानी चाहिए।