बड़ी खबर: गंगा किनारे उजाडे गए कुष्ठ रोगियों का हाईकोर्ट ने स्वयं लिया संज्ञान

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दो जनवरी से पहले निर्णय लेने के सख्त निर्देश

हरिद्वार में गंगा किनारे व अन्य जगहों से कुष्ठ रोगियों को हटाए जाने के खिलाफ स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के मामले में कोर्ट ने सरकार को कुष्ठ रोगियों के आवास के लिए दी गयी डीपीआर पर दो जनवरी से पहले निर्णय लेने के सख्त निर्देश दिए हैं।

हाई कोर्ट उत्तराखंड ने सचिव शहरी विकास, सचिव समाज कल्याण व जिलाधिकारी हरिद्वार से सुप्रीम कोर्ट की ओर से कुष्ठ रोगियों के उत्थान के लिए जारी दिशा निर्देशों के अनुपालन की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। कुष्ठ रोग उन्मूलन अधिकारी ने कोर्ट में शपथपत्र पेश कर बताया की उन्होंने पूर्व के आदेश के अनुपालन में कुष्ठ रोगियों के 16 आवास के लिए चार करोड़ 80 लाख की डीपीआर बनाकर सरकार को भेज दी है। अभी बजट पास नहीं हुआ है और कुष्ठ रोगियों के उत्थान के लिए सुप्रीम कोर्ट से जारी दिशा निर्देशों के अनुपालन हेतु उन्होंने सरकार को पत्र भेजा है, जिसमें अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया। जिस पर कोर्ट ने दो जनवरी से पहले निर्णय लेने को कहा है। अगली सुनवाई को दो जनवरी की तिथि नियत की है।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में देहरादून के एनजीओ एक्ट नाव वेलफेयर सोसाइटी ट्रस्ट द्वारा मुख्य न्यायाधीश को भेजे गए पत्र मे कहा कि अतिक्रमण हटाने के बाद अब इनके पास न घर है, न रहने की कोई व्यवस्था। भारी बारिश में कुष्ठ रोगी खुले में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पत्र में कहा गया कि 2018 में राष्ट्रपति के दौरे के दौरान हरिद्वार जिला प्रशासन ने चंडीघाट में स्थित गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के साथ-साथ उनके अन्य आश्रमों को भी तोड़ दिया था, जिससे वह आश्रम विहीन हो गए।

राजनीति संरक्षण वाले आश्रम को नहीं तोड़ा गया
गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के आस पास अन्य सात बड़े कुष्ठ रोग आश्रम भी हैं, जिन्हें नहीं तोड़ा गया, क्योंकि यह उच्च राजतीतिक प्रभाव वाले व्यक्तियों के है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। पत्र में सरकार कुष्ठ रोगियों का पुनर्वास करने, उनको मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने व उनका खर्चा स्वयं वहन करने को निर्देश जारी करने की प्रार्थना की है(GS)