शून्य में उतरकर ही सृजन एवं समाधान होता हैः आचार्य बालकृष्ण
हरिद्वार। दस दिवसीय संन्यास दीक्षा महोत्सव के तीसरे दिन साधना केन्द्र आश्रम,डुमेट, देहरादून से स्वामी प्रेम विवेकानंद जी महाराज ऋषिग्राम पहुँचे जहाँ स्वामी रामदेव ने माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया। इस अवसर पर स्वामी प्रेम विवेकानंद ने कहा कि संन्यास परम्परा का अनुसरण कर स्वामी रामदेव जी महाराज सनातन धर्म तथा सनातन मूल्यों की प्रतिष्ठा को गौरव प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने भावी संन्यासियों को संन्यस्त जीवन के गूढ़ रहस्यों,मर्यादाओं,गुरु निष्ठा,परोपकार आदि विषयों पर मार्गदर्शित किया। संन्यासी बनने के लिए सर्वप्रथम संन्यासी भाव का होना आवश्यक है तभी संन्यास आश्रम मोक्षदायी सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि संन्यास आश्रम में रहने वाला व्यक्ति योगी है। योगाभ्यास द्वारा अपनी ज्ञानेन्द्रियों,कर्मेन्द्रियों और मन को जीतने वाला तथा परोपकार व परमार्थ की भावना रखने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में संन्यासी कहलाता है। कार्यक्रम में स्वामी रामदेव ने कहा कि अनासक्त होकर कर्मफल की इच्छा से रहित होकर जीना ही संन्यास है। रामनवमी को संन्यास में दीक्षित होकर ये भावी-संन्यासी गुरु को केन्द्र में रखकर,गुरु अभिमुख होकर,गुरु निष्ठ होकर,योगनिष्ठ होकर,सेवा,समर्पण के भाव के साथ राष्ट्र सेवा में अपने जीवन की आहुत करने को तत्पर हैं। उन्होंने कहा कि जो शिष्य अपने गुरु के उपदेशों का पालन कर स्वतः जागरण कर ले वही सच्चा शिष्य या संन्यासी है क्योंकि गुरु तो मार्गदर्शक है, चलना तो स्वयं ही पड़ेगा। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हमारा संन्यास या संस्कृति पलायनवादी नहीं है। विवेक की पराकाष्ठा ही वैराग्य है। संन्यासी अध्यात्म से जुड़कर ध्यान में आप्लावित हो शून्य जैसी चौतन्यपूर्ण स्थिति में प्रवेश पाते हैं,शून्य में उतरकर ही सृजन एवं समाधान होता है। संन्यासी व्यक्ति इस संसार में रहते हुए सभी कामनाओं से विरक्त होकर निर्लिप्त बने रहते हैं तथा ईश्वर भक्ति,गुरु भक्ति में लीन रहते हुए भौतिक सुख-सुविधाओं के प्रति उदासीन रहते हैं। इस अवसर पर भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष एन.पी.सिंह, अजय आर्य, बाबू पद्मसेन आर्य,महिला मुख्य केन्द्रीय प्रभारी साध्वी देवप्रिया,आचार्यकुलम् की निदेशिका बहन ऋतम्भरा शास्त्री,क्रय समिति अध्यक्षा बहन अंशुल,संप्रेषण विभाग प्रमुख बहन पारूल,मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेश कुमार‘भारत’,डॉ.जयदीप आर्य,स्वामी परमार्थदेव,स्वामी आर्षदेव, स्वामी विदेहदेव,स्वामी ईशदेव, स्वामी जगतदेव,स्वामी सहदेव सहित पतंजलि विश्वविद्यालय व पतंजलि गुरुकुलम् के विद्यार्थिगण तथा संस्था के सभी वरिष्ठ उपस्थित रहे।