-अशोक त्रिपाठी
अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश यूक्रेन मंे युद्ध को लेकर अक्सर कहते हैं कि भारत इस मामले मंे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसमंे कोई संदेह भी नहीं है क्योंकि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है। दुनिया के मंच पर उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होनी भी चाहिए लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 13 जुलाई को पेरिस मंे एक अखबार को सा़क्षात्कार देते हुए महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है जिसका जवाब बड़े राष्ट्रों को देना ही पड़ेगा। सभी जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य अगर किसी भी प्रस्ताव को रांेक दें, तो उसे पारित नहीं किया जा सकता। भारत जैसा सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बनाया जा सका तो विश्व के लिए बोलने की अपेक्षा उससे कैसे की जा सकती है। भारत वैश्विक आर्थिक विकास, तकनीकी उन्नति व मानव विकास मंे योगदान मंे सबसे आगे है। दुनिया भर मंे मंदी, खाद्य सुरक्षा, मुद्रास्फीति, सामाजिक तनाव जैसी कई समस्याओं का भारत समाधान पेश कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर इसीलिए सवाल उठाया है क्योंकि भारत वैश्विक दक्षिण और पश्चिम की दुनिया के बीच पुल का काम कर रहा है। दुनिया के कई देश हैं जिनके अधिकारों को नकारा गया है, वे भारत की तरफ टकटकी लगाये हैं। भारत आगे बढ़कर काम भी करना चाहता है लेकिन उसके हाथ पूरी तरह से खोलने होंगे।
अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका को लेकर बड़ी बात कही है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि भारत जैसे देश इस युद्ध को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। भारत के दोनों ही देशों से अच्छे संबंध हैं। अमेरिका ने कहा कि इस युद्ध को लेकर हम भारत के साथ नियमित निकट संपर्क में हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि भारत उन देशों में शामिल हो सकता है, जो रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे विवाद को समाप्त करने के लिए कूटनीति में भूमिका निभा सकते हैं। प्राइस ने कहा कि हम मानते हैं कि भारत जैसे रूस और यूक्रेन के साथ संबंध रखने वाले देश बातचीत और कूटनीति में मदद करने की स्थिति में हो सकते हैं जो एक दिन इस युद्ध को समाप्त कर सकते हैं। रूस को जवाबदेह ठहराने और उसके युद्ध के लिए रूस पर अतिरिक्त लागत लगाने के लिए हम क्या कर सकते हैं, इस बारे में हम भारत के साथ नियमित निकट संपर्क में हैं।हमारे दृष्टिकोण हमेशा समान भले न हों, लेकिन हम मित्र हैं।
उन्होंने कहा, हो सकता है कि हम हमेशा सटीक रूप से समान नीतिगत दृष्टिकोण साझा न करें, लेकिन हम दोनों एक नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय आदेश को बनाए रखने की प्रतिबद्धता साझा करते हैं, जो क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करता है। प्राइस ने उल्लेख किया कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2022 में सार्वजनिक रूप से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा, मुझे पता है कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है।गौरतलब है कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड का सदस्य है। यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में भारत की संभावित राजनयिक भूमिका की बात करते हुए प्राइस ने इसे निकट भविष्य की संभावना के रूप में देखा। उन्होंने कहा, यह संभव हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वन अर्थ वन हेल्थ के दृष्टिकोण और वसुधैव कुटुम्बकम पॉलिसी के तहत भारत ने अफ्रीका महाद्वीप के 42 देशों को मेड इन इंडिया कोविड टीकों की आपूर्ति की। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैंक कॉन्क्लेव में उद्घाटन भाषण को संबोधित करते हुए कहा था महामारी के दौरान, भारत ने अफ्रीका के साथ अपने जुड़ाव को जारी रखा। जयशंकर ने कहा कि अफ्रीका में अपने दोस्तों का समर्थन करने के लिए भारत ने 32 देशों को चिकित्सा सहायता प्रदान की। जनवरी 2021 से मार्च 2023 तक हमने महाद्वीप के 42 देशों को मेड इन इंडिया कोविड टीकों की आपूर्ति की। यह हमारे प्रधानमंत्री के वन अर्थ वन हेल्थ के दृष्टिकोण और वसुधैव कुटुम्बकम में हमारी सभ्यतागत मान्यता के अनुरूप था। अब भारतीय फार्मा निर्माताओं और वैक्सीन निर्माताओं को अफ्रीकी देशों में संयुक्त विनिर्माण सुविधाओं का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने वर्चुअल शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं के बारे में भी बात की। जयशंकर ने बताया कि भारत ने टेली-एजुकेशन और टेली-मेडिसिन के लिए 2019 में ई-विद्याभारती और ई-आरोग्यभारती नेटवर्क लॉन्च किया है।
यह भी ध्यान रहे कि 8 नवंबर, 2022 को प्रधानमंत्री ने जी20 लोगो लॉन्च किया था और भारत की जी20 प्रेसीडेंसी थीम- वसुधैव कुटुम्बकम यानी-वन अर्थ. वन फैमिली। वन फ्यूचर का अनावरण किया था। जी 20 लोगो को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में डिजाइन किया गया, जो हमारे पृथ्वी-समर्थक दृष्टिकोण और चुनौतियों के बीच विकास का प्रतीक है। जी-20 का गठन साल 1999 में हुआ था। इसको ग्रुप ऑफ ट्वेंटी भी कहा जाता है। यह यूरोपियन यूनियन और 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है। जी-20 शिखर सम्मेलन में इसके नेता हर साल जुटते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ाने पर चर्चा करते हैं। शुरुआत में यह वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों का संगठन हुआ करता था। इसका पहला सम्मेलन दिसंबर 1999 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हुआ था। 2008 में दुनिया ने भयानक मंदी का सामना किया था। इसके बाद इसे शीर्ष नेताओं के संगठन में तब्दील कर दिया गया। इसके बाद यह तय किया गया कि साल में एक बार जी-20 राष्ट्रों के नेताओं की बैठक की जाएगी। जी 20 में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
जी-20 में दो समानांतर ट्रैक होते हैं। वित्त ट्रैक और शेरपा ट्रैक। शेरपा पक्ष की ओर से जी-20 प्रक्रिया का समन्वय सदस्य देशों के शेरपाओं द्वारा किया जाता है जो नेताओं के निजी प्रतिनिधि होते हैं। वित्त ट्रैक का नेतृत्व सदस्य देशों के वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नर करते हैं। दोनों ट्रैक के अंदर कार्य समूह हैं जिनमें सदस्यों के संबंधित मंत्रालयों के साथ आमंत्रितध्अतिथि देशों और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। वित्त ट्रैक मुख्य रूप से वित्त मंत्रालय के नेतृत्व में है। यह कार्य समूह हर अध्यक्षता के पूरे कार्यकाल में नियमित बैठकें करते हैं। शेरपा पूरे साल के दौरान हुई वार्ताओं का पर्यवेक्षण करते हैं। शिखर सम्मेलन के लिए एजेंडे पर चर्चा करते हैं। जी 20 का सबसे बड़ा मकसद आर्थिक सहयोग है। इसमें शामिल देशों की कुल जीडीपी दुनिया भर के देशों की 80 फीसदी है।
यूएन सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग का रूस और अमेरिका ने भी समर्थन किया। भारत के पास जी-20, देशों की अध्यक्षता है। (हिफी)