हरिद्वार: संस्कृत विद्यालयों और महाविद्यालयों के प्रबंधकों ने सरकार द्वारा थोपी जा रही एक नई योजना का कड़ा विरोध किया है। प्रबंधकों का मानना है कि यह योजना संस्कृत शिक्षण संस्थानों के स्वायत्तता को कम करेगी और इनमें बाहरी हस्तक्षेप बढ़ाएगी।
खड़खड़ी स्थित निर्धन निकेतन आश्रम में हुई बैठक में प्रबंधकों ने एक स्वर से कहा कि संस्कृत विद्यालय मूलतः धर्माचार्यों और संतों द्वारा स्थापित किए गए थे और इनका संचालन 1860 के सोसाइटी एक्ट के तहत होता है। सरकार का यह फैसला बिना प्रबंधकों की सहमति के लिया गया है और इसे उन्होंने ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया है।
प्रबंधकों ने कहा कि इस योजना से विद्यालयों में विवाद की स्थिति पैदा होगी और विद्यार्थियों पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजने का फैसला किया है। यदि जरूरत पड़ी तो वे न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाएंगे।
समाचार की मुख्य बातें:
* संस्कृत विद्यालयों के प्रबंधकों ने सरकार की एक नई योजना का विरोध किया।
* प्रबंधकों का मानना है कि यह योजना विद्यालयों की स्वायत्तता को कम करेगी।
* प्रबंधकों ने इस फैसले को ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया है।
* प्रबंधकों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का फैसला किया है।
2024-11-29