आध्यात्मिकता, विज्ञान और संस्कृति का संगम है संस्कृत – आचार्य बालकृष्ण
हरिद्वार; केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली एवं पतंजलि विश्वविद्यालय,हरिद्वार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 62वीं अखिल भारतीय शास्त्र स्पर्धा का उद्घाटन सत्र में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत केवल एक प्राचीन भाषा नहीं,बल्कि आध्यत्मिकता,विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम है।संस्कृत हमारी मूल भाषा है,जो सत्य और प्रामाणिकता पर आधारित है।ऐसे आयोजनों के माध्यम से हम इस अमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने में सफल होंगे। मंगलवार से 21मार्च तक चलने वाले इस स्पर्धा में उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ज्ञान और कलाओं की आधारशिला संस्कृत ही है।उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा बाहरी आक्रमणों के कारण अनेक चुनौतियों और षड्यंत्रों से गुजरी है,लेकिन इसके बावजूद हमारी संस्कृति,संस्कृत भाषा और शास्त्र आज भी प्रासंगिक और सशक्त हैं।पश्चिमी दृष्टिकोण ने संस्कृत को केवल कर्मकांड तक सीमित कर हमारे मन में हीनता भरने का प्रयास किया,जबकि संस्कृत किसी भी क्षेत्र में व्यक्ति को समर्थ बनाती है। आचार्य बालकृष्ण ने आगे कहा कि यदि हमारे पीछे शास्त्र,संस्कृत और संस्कृति नहीं होती,तो हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता। आचार्य जी ने कहा कि भारतीय इतिहास ही वास्तविक रूप में विश्व का इतिहास है,और आज हम वैश्विक मंच पर अपनी शास्त्रीय परंपराओं एवं ज्ञान-विज्ञान के कारण पुनःप्रतिष्ठित हो रहे हैं। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि संस्कृत भाषा केवल एक सम्प्रेषण का माध्यम नहीं,बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने कहा कि यह अखिल भारतीय शस्त्रीय स्पर्धा संस्कृत भाषा के संरक्षण और प्रचार- प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से विद्यार्थियों को वैदिक साहित्य,दर्शन,व्याकरण,न्याय,ज्योतिष,साहित्य और संगीत जैसी विविध विधाओं में न केवल अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त होता है,बल्कि वे एक दूसरे से सीखकर संस्कृत के गूढ़ रहस्यों में भी निपुण बनते हैं। उन्होंने कहा कि 62वीं अखिल भारतीय शास्त्रीय स्पर्धा न केवल संस्कृत भाषा के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है,बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। विशिष्ट अतिथि एवं महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सीजी विजय कुमार ने ज्ञान को राष्ट्र की शक्ति बताते हुए कहा कि आज हम एक विशिष्ट परिवर्तन काल में जी रहे हैं,जहां संपूर्ण भारत में भारतीय ज्ञान परंपरा पर गहन चर्चा हो रही है।इस संदर्भ में उन्होंने इस शास्त्र स्पर्धा को 2047तक विकसित भारत बनाने की दिशा में एक सशक्त पहल बताया।इस अवसर पर भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.एन.पी.सिंह और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ.संध्या पुरेचा ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और संस्कृत भाषा को लेकर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर वाक्यार्थ परिचर्चा का भी आयोजन किया गया,जिसमें देश के विभिन्न कोनों से पधारे आचार्यों ने विविध शास्त्रों और मिमांसाओं में प्रयुक्त जनिक्रतुप्रकृतिः सूत्र को लेकर गहन चर्चाएं कीं।इस परिचर्चा में अद्वैत वेदांत,पाणिनि के सूत्रों तथा उन पर लिखे गए भाष्यों में प्रकृति सूत्र के प्रयोग एवं उसकी व्याख्या पर विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। परिचर्चा में आचार्य श्रीनिवास वड़खेड़ी,आचार्य देवदत्त पाटिल,आचार्य ज्ञानेंद्र,आचार्य ब्रजभूषण ओझा,डॉ.विल्वाकुपेश्वर और आचार्य तुलसी कुमार ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के मानविकी एवं प्राच्य विद्या संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासिका प्रो.साध्वी देवप्रिया,पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.मयंक कुमार अग्रवाल,दूरशिक्षा निदेशक प्रो.सत्येंद्र मित्तल,कुलसचिव आलोक कुमार सिंह,कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव सहित पतंजलि विश्वविद्यालय तथा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के संकाय सदस्य,विद्यार्थी,शोधार्थी और देश के कोने-कोने से पधारे विद्वतजन उपस्थित रहे।कार्यक्रम का मंच संचालन प्रो.पवन व्यास ने किया।