मनसा देवी हादसा: संत समाज ने जताया गहरा दुख, सुरक्षा के कड़े इंतजाम की मांग
हरिद्वार। मनसा देवी मंदिर में हुई भगदड़ में आठ लोगों की मौत पर संत समाज ने गहरा दुख व्यक्त किया है। जयराम पीठाधीश्वर ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने इस घटना को “बेहद दुखद” बताते हुए मृतकों को श्रद्धांजलि दी और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की। उन्होंने सरकार से ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कड़े कदम उठाने और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया।
महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद सरस्वती, भारत माता मंदिर के महंत महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी, और महामंडलेश्वर स्वामी आदियोगी पुरी ने भी हादसे को “बेहद दुखदायी” बताया और मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने मां गंगा से मृतकों को अपने श्रीचरणों में स्थान देने और घायलों को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना की। संतों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि मनसा देवी घटना के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक और मंदिर में भगदड़ की घटना सामने आई है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए एक ठोस नीति बनाने की अपील की ताकि लगातार हो रही ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
भगवान शिव की कृपा से मिलती है अटूट साधना की शक्ति: स्वामी कैलाशानंद गिरी
हरिद्वार। श्रीदक्षिण काली मंदिर में पूरे श्रावण मास चलने वाली साधना के तहत सोमवार को स्वामी कैलाशानंद गिरी ने भगवान शिव का जलाभिषेक किया। उन्होंने मनसा देवी हादसे के मृतकों को शिवधाम में स्थान देने की प्रार्थना की। स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि भगवान शिव और मां काली की कृपा से ही उन्हें लगातार अटूट साधना करने की शक्ति मिलती है। उन्होंने भक्तों को बताया कि भगवान शिव अत्यन्त सरल और भोले हैं, वे केवल एक लोटा जल अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, केवल सद्मार्ग पर चलते हुए विधिवत आराधना करें, जरूरतमंदों की मदद करें और माता-पिता की सेवा करें। सद्मार्ग पर चलने वालों पर भगवान शिव हमेशा कृपा करते हैं। स्वामी कैलाशानंद गिरी के शिष्य स्वामी अवंतिकानंद ब्रह्मचारी ने बताया कि श्रीदक्षिण काली मंदिर में विधि-विधान से आराधना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिव: प्रकृति के संरक्षक, ‘स्व’ से ‘समष्टि’ की यात्रा का आह्वान: स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश: सावन मास के तीसरे सोमवार के शुभ अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी शिवभक्तों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि आज का दिन प्रकृति और परमात्मा के पवित्र मिलन का है। यह संयोग मात्र नहीं, बल्कि यह संकेत है कि हम प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, बल्कि साक्षात् शिव स्वरूप मानें। स्वामी जी ने समझाया कि भगवान शिव संपूर्ण सृष्टि के आधार हैं और वे ही पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के स्वामी हैं। उनके गले में सर्प, जटाओं में गंगा, शरीर पर भस्म और वाहन नंदी, ये सब प्रतीक हैं कि शिव स्वयं प्रकृति में रमण करते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आगे कहा कि शिव का स्वरूप स्वयं में पर्यावरणीय स्थिरता का प्रतीक है। उनकी जटाओं में गंगा, जल संरक्षण और प्रवाह का संतुलन दर्शाती है; गले का सर्प, जैव विविधता के साथ समरसता; शरीर पर भस्म, उपभोग से संयम का प्रतीक; नंदी, पशुधन और प्रकृति के साथ सामंजस्य; और त्रिशूल, चेतना, ऊर्जा और न्याय का त्रय संतुलन है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस बात पर जोर दिया कि आज जब हम विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मना रहे हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि प्रकृति के संरक्षण की शुरुआत बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से होती है। ‘स्व’ से ‘समष्टि’ का यही अर्थ है कि जब हम अपने जीवन को संयमित, सतोगुणी और सेवा-परक बनाते हैं, तो उसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति हमारे अस्तित्व की आधारशिला है। जल, वायु, वृक्ष, नदियाँ, पर्वत और जीव, ये सभी प्रकृति के वो अंग हैं जो जीवन को संभव और संतुलित बनाते हैं। यदि प्रकृति है, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित है, और तभी हमारी सनातन संस्कृति जीवंत रह सकती है। हमारी संस्कृति सदैव “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना पर आधारित रही है, जहाँ जीव-जंतुओं, पेड़ों और नदियों को भी ईश्वर का रूप मानकर पूजा जाता है।