बड़ी खबर: कांवड़ मेले में दिख रहे आस्था के नए-नए रंग

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डेढ़ कुंतल वजनी कांवड़ लेकर जा रहा कांवड़ियां बना आकर्षण का केंद्र

हरिद्वार। अंतिम चरण की और बढ़ रहे कांवड़ मेले में आस्था के नए-नए रूप देखने को मिल रहे हैं। दो वर्ष बाद हो रहे कांवड़ मेले में देश भर से आए लाखों शिवभक्त कांवड़ों में गंगा जल लेकर अपने गंतव्यों की और लौट रहे हैं। आस्था और विश्वास से सराबोर अधिकांश कांवड़िएं कंधों पर कांवड़ उठाए चल रहे हैं तो कोई शरीर के बल रेंगते हुए अपने अभिष्ट शिवालय जा रहा है। वापस लौट रहे लाखों कांवड़ियों के बीच पीठ पर लोहे के कुंडे फंसाकर तथा उनके सहारे करीब डेढ़ कुंतल वजन की कांवड़ खीचते हुए अपने गंतव्य की और बढ़ रहा हरियाणा के कैथल के केयोडक गांव का कांवड़ियां जोगिंदर गुज्जर सभी के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। जोगिंदर गुज्जर ने बताया कि जैसे बजरंग बली हनुमान ने अपना सीना चीरकर अपने हृदय में साक्षात विराजमान भगवान श्रीराम के दर्शन सबको कराए थे। उसी प्रकार वह भगवान शिव की भक्ति में अपनी पीठ पर लोहे के कुंडे फंसाकर उसके जरिए कांवड़ को खींचते हुए ले जा रहे हैं। भगवान शिव का स्मरण करते रहने के कारण उन्हें दर्द भी महसूस नहीं होता है। पल्म्बर का काम करने वाले जोगिंदर गुज्जर ने बताया कि वह ताईक्वांडों के खिलाड़ी हैं और इस प्रकार कांवड़ ले जाने की प्रेरणा उन्हें अपने कोच देशराज से मिली है। साथ चल रहे कोच देशराज ने बताया कि हरियाणा बार्डर तक जोगिंदर कांवड़ लेकर जाएंगे। इसके बाद वह स्वयं इसी प्रकार कांवड़ को मंदिर तक लेकर पहुंचेंगे। देशराज ने बताया कि इसी प्रकार कमर में कुंडे लगाकर उन्होंने वाल्मिीकि जयंती पर ट्रक खींचा था। इसके बाद उनके मन में इसी प्रकार हरिद्वार से कांवड़ ले जाने का विचार आया। इसके पूर्व कांवड़ में माता पिता बैठाकर कांवड यात्रा कर रहे गाजियाबाद निवासी एक कांवड़िएं की माता पिता के प्रति भक्ति ने सभी को बेहद प्रभावित किया था और स्थानीय लोगों ने उन्हें आधुनिक श्रवण कुमार उपाधि देकर उनका सम्मान किया था।