धर्म-कर्म: श्रद्धालुओं को कराया शिव सती चरित्र कथा का श्रवण

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श्रद्धालुओं को कराया शिव सती चरित्र कथा का श्रवण
हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में प्राचीन अवधूत मंडल आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने श्रद्धालुओं को शिव एवं सती चरित्र का श्रवण कराया। शास्त्री ने बताया कि एक समय दक्ष प्रजापति ने सभा का आयोजन किया। सभा में ऋषि, मुनि,देवी, देवता सभी उपस्थित थे। दक्ष प्रजापति सभा में देर से पहुंचे। सब ने उठकर दक्ष प्रजापति का स्वागत किया। किंतु ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तीनों देवता बैठे रहे। दक्ष प्रजापति ने इसे शिव द्वारा अपना अपमान जान कर क्रोधित होकर कहा कि ब्रह्मा मेरे जन्मदाता पिता हैं। विष्णु मेरे दादाजी हैं। इन्हीं के द्वारा ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है। परंतु शिव जिन्हें मैंने अपनी बेटी का कन्यादान किया है। उन्होंने उठ करके मेरा स्वागत नहीं किया। सिदा भूत प्रेतों का संग करने वालक श्मशान में रहने वाले शिव को क्या पता कि कैसे दूसरे का सम्मान किया जाता है। दक्ष ने शिव का बहुत अपमान किया। शिव गणों को यह सब बेहद बुरा लगा। शिव के वाहन नंदी ने दक्ष को श्राप को देते हुए कहा कि तुम बहुत मै मै कर रहे हो। जो मै मै करता है। वह बकरे की योनि में जाता हैं। तुम्हारे धड़ से बकरे का सिर लग जाए। दक्ष के अनुयायियों ने भी शिव गणों को श्राप देते हुए कहा कि तुम भिक्षुक हो जाओ। भगवान शिव ने देखा कि झगड़ा ज्यादा बढ़ रहा है तो भगवान शिव कैलाश पर्वत को चले गए। शिव के गण भी कैलाश पर्वत पहुंच गए। दक्ष प्रजापति ने शिव अपमान के लिए हरिद्वार कनखल में यज्ञ का आयोजन किया। सभी को निमंत्रण दिया। लेकिन शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती को जब पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है तो वह बिना शिव की आज्ञा के यज्ञ में पहुंच गई और वहां शिव का अपमान देख कर सती ने दक्ष यज्ञ में अपना शरीर त्याग दिया। शिव को जब इसका पता चला तो उन्होंने वीरभद्र को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर दक्ष के सिर को यज्ञ कुंड में स्वाहा कर दिया। तब सभी ने भगवान शिव की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न होकर शिव ने दक्ष के धड़ से बकरे का सर जोड़कर कर दक्ष को जीवनदान दिया। तब वहां भगवान नारायण प्रकट हुए। सभी ने भगवान नारायण एवं भगवान शिव से वरदान मांगा कि आज से हरिद्वार में ही दक्षेश्वर के रूप में भगवान शिव सदा सर्वदा विराजमान हो जाएं और भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करें। तभी से भगवान दक्षेश्वर के रूप में हरिद्वार कनखल में विराजमान है। जो भी भक्त श्रद्धा भक्ति के साथ हरिद्वार आकर भगवान शिव का पूजन करता है। भगवान शिव उसकी समस्त मनोकामना को पूर्ण करते हैं। शास्त्री ने बताया कि भगवान शिव कालों के काल महाकाल हैं। सभी को भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए, हो सके तो प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना चाहिए। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों की समस्त मनोकामना को पूर्ण कर देते हैं। इस अवसर पर मुख्य यजमान विपिन बडेरा,पूनम बडेरा, विवेक बडेरा,प्रदीप बडेरा,अन्नू बडेरा,लक्ष्य वडेरा,रियांश वडेरा,मीनू डल,पुष्पेंद्र डल,ममता पुरी,अजय कुमार शायी,सुमित शायी,गीता शायी,लक्ष्मी शायी,सपना बीज ,सतीश कुमार बीज,पंडित जगदीश प्रसाद खंडूरी,पंडित गणेश कोठारी,पंडित हरीश शर्मा, पंडित विष्णु आदि ने भागवत पूजन एवं भगवान शिव का पूजन विधि विधान के साथ संपन्न किया।