इंदौर में क्यों करनी पड़ी ऐसी राजनीति ?

Listen to this article

जिस प्रकार भोपाल के बारे में कहा जाता है से इंदौर की पहचान उससे भी ताकतवर गढ़ की दिखाई जाती है। यहां से सुमित्रा महाजन आठ बार लोकसभा की सदस्य रही हैं। पिछले चुनाव में शंकर लालवानी 5 लाख 47 हजार 754 वोटों से जीते थे। अबकी बार तो मोदी जी के नाम पर वोट पड़ रहे हैं

– सुरेश शर्मा

भोपाल :  जिस प्रकार भोपाल के बारे में कहा जाता है, इंदौर की पहचान उससे भी ताकतवर गढ़ की दिखाई जाती है। यहां से सुमित्रा महाजन आठ बार लोकसभा की सदस्य रही हैं। पिछले चुनाव में शंकर लालवानी 5 लाख 47 हजार 754 वोटों से जीते थे। अबकी बार तो मोदी जी के नाम पर वोट पड़ रहे हैं। कुछ समय पहले ही विधानसभा की सभी सीटें जीतने का इतिहास इंदौर ने बनाया था। फिर ऐसा क्या हुआ कि इंदौर को इस प्रकार की राजनीति करके देश के सामने उदाहरण पेश करने की जरूरत आई? यह सवाल उस समय और महत्वपूर्ण हो गया जब राहुल गांधी ने भिंड में जीतू पटवारी से पूछा कि आखिर इंदौर की राजनीति को ऐसा मोड़ क्यों लेना पड़ा। इंदौर तो लोकसभा में ताई के नाम से जाना जाता है? खुद सुमित्रा महाजन सामने आई और उन्होंने इस सारे मामले से पल्ला झाड़ लिया। वे बोली कि हम तो चुनाव जीत ही रहे थे तब इस प्रकार का संदेश देने की जरूरत नहीं थी। इस सारे एपीसोड से प्रत्याशी शंकर लालवानी का कोई सरोकार नहीं था। तब तो ऐसे घटनाक्रम की जरूरत नहीं थी? इंदौर की पहचान ऐसे राजनीतिक घटनाक्रमों की रही भी नहीं है? तब यह क्या हो गया?

खजुराहों में विपक्षी प्रत्याशी का नामांकन निर्वाचन अधिकारी ने निरस्त किया था। सूरत में कांग्रेस का नामांकन पत्र निरस्त होने के बाद निर्विरोध निर्वाचन के प्रयास हुए और सफलता मिली। यह लोकसभा के चुनाव हैं काेई विश्व विद्यालय के चुनाव नहीं हैं जिसमें सीआर को उठा लिया जाये और चुनाव जीत लिया जाये। इस घटनाक्रम में कांग्रेस सदमें है और भाजपा सकते में। लोकतंत्र में चुनाव के परिणाम निर्धारित करने का अधिकार मतदाता के पास सुरक्षित है। मतदाता के पास यदि दलों के प्रतिनिधियों में से चयन की सुविधा नहीं रहेगी तब लोकतंत्र का वह मायने नहीं होगा जो तय किया गया है। इस बम कांड में भाजपा के अन्य नेताओं की भूमिका कितनी है इस बारे में अभी पिक्चर सामने नहीं आई है लेकिन यह मोदी की राजनीति न होकर अमित शाह संस्करण होगा। जो भी है इससे भाजपा उत्साहित तो दिखाई नहीं दे रही है। दिल्ली की ओर से कोई प्रसंशा पत्र नहीं आया है और मध्यप्रदेश भी केवल घटनाक्रम पर बयान ही जारी कर रहा हे। पीठ किसी ने नहीं थपथपाई है।फिर भी राजनीति शक्ति प्रदर्शन का आधार बन जाता है। चुनाव में विजेता वही जो अपनी ताकत दिखा सके। फिर ताकत मतदाता के पक्ष में होने की हो या अन्य प्रकार की हो। इंदौर ने देश को नयी  राजनीति करना सिखाई है। इंदौर वैसे भी देश को कई मामलों में राह दिखा रहा है। स्वच्छता है। व्यापार का अपना तरीका है। खान-पान व जायका है। लेकिन इस प्रकार की राजनीति का यह अजब संदेश है। अब देश इसे किस प्रकार से लेता है इसकी प्रतीक्षा कर लेते हैं?

फिर भी राजनीति शक्ति प्रदर्शन का आधार बन जाता है। चुनाव में विजेता वही जो अपनी ताकत दिखा सके। फिर ताकत मतदाता के पक्ष में होने की हो या अन्य प्रकार की हो। इंदौर ने देश को नयी  राजनीति करना सिखाई है। इंदौर वैसे भी देश को कई मामलों में राह दिखा रहा है। स्वच्छता है। व्यापार का अपना तरीका है। खान-पान व जायका है। लेकिन इस प्रकार की राजनीति का यह अजब संदेश है। अब देश इसे किस प्रकार से लेता है इसकी प्रतीक्षा कर लेते हैं?