धर्म -कर्म : संगमेश्वर महादेव जहां नागराज शिवलिंग से लिपटते हैं

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– पवन वर्मा

देवताओं व ऋषि-मुनियों की पावन भारत भूमि का कण-कण सदियों से पवित्रता व महानता का संदेश देता रहा है। यहां के पर्वत, नदियां, सागर, तीर्थ, व्रत, आदि आज भी किसी न किसी रूप में हमें अपनी महानता का एहसास कराते हैं।
देवादिदेव भगवान शंकर जिन्हें नीलकंठ, आशुतोष, भोले भंडारी आदि अनेक नामों से स्मरण किया जाता है का अत्यंत प्राचीन तीर्थ हरियाणा के अरुणाय नामक कस्बे में है, जो पिहोवा से मात्र पांच कि.मी की दूरी पर है। इस जगह भगवान शिव का प्रसिद्ध श्री संगमेश्वर महादेव मंदिर है। कहा जाता है कि इस जगह पर सरस्वती और अरुणा का संगम था। शायद इसलिए इसे संगमेश्वर महादेव कहते हैं। प्राचीन काल में इस तीर्थ का अत्यधिक महत्व रहा है। ऐसा बताते हैं बाबा गणेश गिरी को भगवान शंकर ने स्वप्न में कहा, मैं आदि अनन्त शिव हूं। यहां मेरी पूजा से देवराज इन्द्र भी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
ऋषि विशिष्ट और ऋषि विश्वमित्र ने यही मेरी आराधना की थी। बाबा गणेश गिरि को यह स्वप्न बिहार के एक गांव में शिव पूजन के बाद आया कि आप सरस्वती और अरुणा के संगम पर जाकर शिव आराधना करो। इसके बाद वह अपने दो शिष्यों के साथ इस स्थानकी खोज में निकल पड़े और पिहोवा से पांच कि.मी. दूर उत्तर-पूर्व में अरुणा सरस्वती के संगम में वट वृक्षों के झुंड में रुक गये।
तपस्या में लीन बाबा को एक दिन भविष्यवाणी हुई भक्त, तुम जिसकी खोज में हो वह यहां से कुछ ही दूर है। बाबा ने घने जंगल में पास ही दीमक का एक ढेर दिखाई दिया। वे चिमटे सेइस जगह को कुरेदने लगे। नीचे एक अत्यंत सुंदर पाषाण शिला दिखाई देने लगी। वह उसे उखाडऩे का प्रयत्न करने लगे। जब ऐसा नहीं हुआ तो थक-हार कर लौट गये।
रात्रि में भगवान शंकर ने पुन: स्वप्न में कहा है तपस्वी। मैं आदि अनन्त शिव हूं। मुझे उखाडऩे का व्यर्थ प्रयास मत करो। मैं पत्थर मात्र नहीं हूं। इसे असंख्य ऋषि मुनियों व राजा महाराजाओं को भक्ति प्राप्त हुई है अत: इस स्थान का उद्धार करके शिव आशीर्वाद प्राप्त करो।
बाबा अंधेरे में ही उस स्थान की ओर भागे उस पिण्डी पर मणिमय सर्पराज फन फैलाए विराजमान थे। बाबा भोले शंकर की लीला समझ गए, दूर से ही उन्हें प्रणाम किया और सर्पराज लुप्त हो गये। तब बाबा गणेश गिरि ने वहां निर्माण कार्य प्रारंभ किया और यहां पर अत्यंत सुंदर शिव मंदिर का निर्माण हो पाया।
अरुण संगम तीर्थ की महिमा पुरातन काल में महाभारत, वामन पुराण, गरुड़ पुराण ब्रम्हवैवर्त पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण आदि ग्रंथों में वणित है। महाभारत में अरुणा संगम तीर्थ के बारे में कथा वर्णित है। कहते हैं कि ऋषि विश्वमित्र के श्राप से सरस्वती रक्त मिश्रित होकर बहने लगी थीं।
बाद में ऋषि के श्राम से मुक्ति दिलाने के लिये असंख्य ऋषि मुनियों ने निरंतर जप और यज्ञ करके भगवान शिव को प्रसन्न किया तो उन्होंने स्वयं प्रकट होकर सरस्वती को इस श्राप से मुक्त किया था। तब उस स्थान पर ऋषियों ने महादेव जी की स्थापना की थी।
महाभारत में वर्णित एक श्लोक का सार यूं है-महर्षि लोमहर्षण जी तपस्वी ऋषियो को अरुणा संगम के बारे में बताते हुए यूं कहते हैं यहां तीन रातों का उपवास पूर्वक स्नान करने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। घोर कलियुग आने पर अधर्म का प्रचार होने पर मनुष्य इस संगम में स्नान करके मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
इस महान पुण्य भूमि पर मंदिर में जो शिवलिंग की पिण्डी है वह भूरे रंग की है, जिसके दर्शन मात्र से ही शिवभक्त शिवमय हो जाते हैं। कई बार इस शिवलिंग के ऊपर नागराज ने अपना पहरा दिया है। मंदिर के मुख्य द्वार से आगे बड़े द्वार से होते हुए एक नागराज सीधे मंदिर में उतरे और शिवभक्ति में लीन अनेक भक्तों के बीच से होकर शिवलिंग पर पहुंचकर उससे ऐसा लिपटे कि दो घंटे तक फन फैलाकर भगवान शंकर के साक्षात मौजूद होने का प्रमाण देने लगे।(वि फी)