ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन, भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की गंगा का एक अविरल स्रोत है। यह केवल एक आश्रम नहीं, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। स्वामी चिदानंद सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती जी के दिव्य मार्गदर्शन में, परमार्थ निकेतन मानवीय मूल्यों और शांति की स्थापना के लिए अथक प्रयास कर रहा है।
दिव्य सत्संग और आत्मिक शांति: स्वामी जी के दिव्य सत्संग न केवल तन-मन को शांति प्रदान करते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के महत्व को भी गहराई से समझने में मदद करते हैं। यहां आने वाले हर व्यक्ति को अपने आत्मिक विकास का अवसर मिलता है। वर्तमान समय में तनाव एक आम समस्या है, ऐसे में परमार्थ निकेतन में दिए जाने वाले ध्यान सत्र लोगों को मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
भारतीय संस्कृति का विश्वव्यापी महत्व: स्वामी चिदानंद सरस्वती जी का मानना है कि भारतीय संस्कृति केवल धार्मिक आस्थाओं का समुच्चय नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में धर्म, सत्य, अहिंसा, करुणा, और परोपकार का पालन करने की प्रेरणा देती है। यह संस्कृति न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
परमार्थ निकेतन: एक प्रेरणा का स्रोत: प्रसिद्ध समाजसेवी चन्दा रूणवाल के अनुसार, परमार्थ निकेतन एक ऐसी प्रेरणा भूमि है जहां लोग आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति की प्राप्ति के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और संस्कारों के वास्तविक अर्थों को समझते हैं। यहाँ से मिली प्रेरणा, व्यक्तिगत जीवन को सशक्त बनाने के साथ-साथ समाज और विश्व में एक सकारात्मक बदलाव लाने का कार्य करती है।
निष्कर्ष: परमार्थ निकेतन भारतीय संस्कृति और संस्कारों के रोपण का एक उभरता केंद्र है। यह न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में मानवीय मूल्यों और शांति की स्थापना के लिए अत्यंत आवश्यक है। परमार्थ निकेतन का दिव्य वातावरण और मां गंगा जी की आरती, हर आने वाले व्यक्ति को मोहित कर लेती है।
2025-01-04