नई दिल्ली, एल. के. पांडेय। लघु मध्यम कारोबार देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। आयात, निर्यात और रोजगार सृजन के मामले में ये अव्वल हैं। ऐसे में इनकी रफ्तार को गतिमान रखना सबसे आवश्यक है। मौजूदा समय में चुनौतियां तो बढ़ी हैं पर नए अवसर भी उत्पन्न हुए हैं। ऐसे में जिन एमएसएमई कारोबारियों में लचीलापन है, बदलाव करने की कुव्वत है और नए को आत्मसात करने का जज्बा है, उनकी सफलता अबाध रूप से बढ़ती रह सकती है। प्रमुख बात है कि हमें हर चीज के लिए सरकार का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है। एमएमएमई कारोबारियों को अपना थोड़ा-थोड़ा काम करते रहने की जरूरत है। किसी एंटरप्रेन्योर की सार्थकता इसी में है कि चुनौती में अपने मॉडल को सफलतापूर्वक लागू करवा ले। ग्राहकों से कनेक्शन और फीडबैक ले और मौजूदा समय में डिजिटल स्पेस में खुद को साबित करे।
एमएसएमई कारोबारियों का सबसे बुनियादी सवाल यही होता है कि हम सामान को किसके लिए निर्मित करें, किसको सामान बेचें, हमारे पास मांग नहीं है। ऐसे में सक्रिय मार्केटिंग यानी डिजिटल मार्केटिंग के तरीकों को अपनाने की जरूरत है। इस दौर में सेल्समैन की फौज किसी काम के लिए लगा नहीं सकते। ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए विभिन्न प्लेटफॉर्म पर अपने सामान को प्रदर्शित करें। वहीं, कारोबारियों को यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि कोई भी मार्केट पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। उसकी भौगोलिक स्थिति बदल सकती है, उसकी जरूरत बदल सकती है। ऐसे में गणितीय आकलनों, मार्केटिंग और अन्य तरीकों का प्रयोग कर उसे पता लगाएं।
सोशल मीडिया पर मार्केटिंग का फायदा यह भी है कि ग्राहक से आपका सीधा जुड़ाव संभव है और विभिन्न जगहों से ग्राहकों से उसका फीडबैक मिल सकता है। ग्राहक आपको सुझाव दे सकते हैं कि इस उत्पाद में मुझे ये बदलाव चाहिए, यह तभी संभव होगा जब कारोबार में आप बदलावों को लागू करने को तत्पर होंगे। जिन कारोबारियों का व्यवसाय मंदा हुआ है या कमजोर पड़ा है, उन्हें कारोबार को बेसिक से शुरू करने के बारे में सोचना होगा। उससे वह नए बदलावों को बिना झिझक लागू कर पाएंगे। अपने खर्चों को कम कैसे किया जाए, इसके बारे में भी सोचने की आवश्यकता है।
वर्तमान समय में सहकार्यता और नेटवर्किंग भी काफी जरूरी है। एक भौगोलिक स्थिति में काम नहीं चल रहा, तो दूसरी भौगोलिक स्थिति में किसी के साथ मिलकर काम करें। आप उसे कच्चा माल और अन्य चीजें उपलब्ध कराएं। ऐसे एमएसएमई कारोबारी,जो निर्यात पर निर्भर हैं, उन्हें अपने आस-पास के घरेलू बाजारों पर ध्यान देना होगा। उनकी जरूरतें क्या हैं, उसके अनुसार उत्पाद करें। हाथ पर हाथ रखने से बदलाव नहीं होगा। वैकल्पिक बाजार के कामों पर ध्यान दें। मसलन एग्रोकेमिकल के लिए काम करने वाले कई कारोबारी सेनिटाइजर बनाने लगे, टेक्सटाइल में मंदी आने पर कंपनियां मास्क बनाने लगीं। ऐसे में उन्होंने परंपरागत कारोबार के साथ नया कारोबार भी शुरू कर दिया।
एक कटु सत्य है कि देश-दुनिया में बड़े कारोबार आपदा के समय ही बने हैं। इस धारणा से निकलना होगा कि सब कुछ खराब हो गया। मुश्किलों में भी हमेशा एक संभावना बनी रहती है। इस समय ग्राहकों में रिवेंज शॉपिंग बढ़ी है, यानी खरीदने की ललक। प्रबंधन में ऐसा माना जाता है कि ऐसे दौर के बाद इस तरह की शॉपिंग की संभावना बढ़ती है। इसलिए व्यापारियों को इसे भुनाने की आवश्यकता है। गूगल के मेक स्मॉल स्ट्रॉन्ग अभियान में कारोबारियों का सशक्तिकरण करना बेहद जरूरी है, जिससे राष्ट्र तरक्की कर सकें।